बस इक यही बात उसे याद रह गई...
दरवाज़े जिन घरों के गुसलखाने में नहीं होते..
उस घर की औरते साड़ियों से परदा करती हैं...
मैने प्यार जताया होगा...तभी तो..
उसने मेरा दिया हुआ ब्रेसलेट कलाइयों में पहन के दिखाया था..
बहुत खुश थी उस दिन वो...
मगर मैं अब भी उसके सिरहाने बैठा था गीली पट्टियां लेकर..
मुझे भी बस इक यही बात याद ना रही...
कपड़ों से चरित्र नापा था एक ने ...
कईयों की आवाज़ में उसका तंज भी बाद में सुनाई देता था मुझे..
वो लड़की जो आपके हर झूठ को झेल कर बनी रहे आपके साथ,,,
उसके माथे पर गीली पट्टियां रखने को बैठना पड़ता है...
मैं कल शाम से बैठा हूं ये गीली पट्टियां लेकर..
इक ये बात सबको याद रह गई...
वो खुश हो जाया करती यूं ही..
किसी ने मेरी तारीफ में कहे थे दो चार शब्द..
और मैने दिये थे कोई सौ दो सौ दर्द...
महीनो गोदी में संभाल के रखा मेरी तारीफ को..
दर्द वाली बातों को घबराकर कहीं चुरा दिया था उसने..
बस ये उदारता उसकी मेरे पास रह गई..
मैं अभी भी बैठा हूं गीली पट्टियां लेकर..
याद रह जाता जब एक जन्मदिन आपको..
पुराना फोन नंबर जब दिमाग से उतरता नहीं...
किसी की आंखों का रंग जब यादों से हटता नहीं..
तब याद आता है किसी से मिलने का दिन आपको..
वो भरोसा जो वैसा भरोसा किसी ने किया नहीं...
ढूंढतें है आप उस भरोसे को दोस्तों हमदर्दो और अपने पिता में..
बस मां में वो भरोसा आपको ढूंढने का मन आता नहीं..
ट्रेन प्लैटफॉर्म पर उतनी तकलीफ़ के साथ कभी निकली ना थी..
काजल में घुले आंसुओं का वो किसी का सबसे बुरा दिन याद रह जाता है आपको.
आप जब नाम देते हैं बहुत प्यारे-प्यारे किसी को..
सिरहाने बैठकर बुखार से तपते माथे को जब आप डर और करूणा दोनों में छू रहे होते हैं..
किसी मॉल के बाहर जब किसी को संभालते हुए आप खुद डगमगा रहे होते हैं...
जब कहीं मन के किसी तहखाने में आप फूट-फूट कर रो रहे होते है..
तब फोन से छनकर आने वाली उस आवाज़ का गुमशुदा हो जाना याद रह जाता है आपको..
लेकिन गीली पट्टियां अभी भी आपके हाथ में हैं...
सिरहाने बैठे भी हुए हैं आप..
मगर उस बिस्तर से उठकर वो चला गया है...
बस इक यही बात आपको अब तक याद रह गई..
-प्रशान्त "प्रखर" पाण्डेय
Nice ... Keep Writing !!!
ReplyDeleteबेहद बेहतरीन कोशिश है...थोड़े और दर्द की जरुरत है..ताकि शब्दों में वजन बढ़ जाए..गुड लक।
ReplyDeletebahut khub surat aap aaj bhi baithe hai gili pattiyaan lekar
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