Friday, October 11, 2013

विमल चंद्र पाण्डेय की कहानी “डर” और मेरी बात


आप जो चाहते हैं वो उस ओर धीरे धीरे बढ़ते हैं और मेरे लिए विमल जी की कहानियां, कविताएं और उनसे मिलने पर मिली बातें सब कुछ सबसे मेरे कुछ सीखने की राह में वो रौशनी हैं जिससे मुझे आगे बढ़ते रहने में डर नहीं लगता और ग़ौर करने वाली बात ये है कि उनका पहला कहानी संग्रह डर शीर्षक से है जिसकी हर कहानी से मेरा रिश्ता बन रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे सब मेरी कहानियां हैं। और शायद आप सबने जिन्होंने ये कहानियां पढ़ी हैं उन्हें भी ऐसा ही लगा होगा। दरअसल किसी भी रचनाकार की पहली कृति बहुत खास होती है और इस लिहाज से विमल जी ने भी इस कहानी संग्रह के ज़रिए कुछ ऐसे लम्हों का निवेदन हमतक पहुंचाया है जिनसे हमारा दुआ-सलाम हुए भी ज़माना हो गया।
   डर की पहली कहानी है रंगमंच...बहुत साधारण सी कहानी जिसे कहने का सलीका इसे आत्मीय बना देता है। ऐसा लगता है कि नायक की तरह आप भी उस वातावरण में घूम रहे हैं जहां वो सबसे ज्यादा खुश है आज के दिन पर क्योंकि उसने बड़े जतन से सौ रूपये जुटाए हैं नसीरूद्दीन शाह का अभिनय देखने के लिए..लेकिन तभी एक बतकही से बात निकलती है, ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस रंगमंच की कठपुतलियां, टिकट नहीं पास से एंट्री है और जिन्हे मिलने थे पास उन्हे मिल गये...ऐसे ही बहुत सी चीज़े जिनको मिलनी होती हैं मिल जाती हैं और जो शिद्दत से चाहते हैं उन्हें बस ऐसे ही खरे खरे जवाब मिलते हैं....चलो फिर पास भी गर मिल गया तो सौ रूपये गये जिनकी अहमियत तो वही जान सकता है जिसे सौ रूपये के हर हिस्से में आगे के चार-पांच दिन का गुज़ारा ललचाता हो..लेकिन सब बरदाश्त है क्योंकि भूख प्यास तो हर रोज़ लगेगी मगर नसीर रोज़ नसीब में ना होगा और फिर ये कहानी आखिर तक आते आते नसीर वाया नसीब एक नज़ीर बन जाती है जहां हम सब तो सच में इस दुनियाई रंगमंच की कठपुतलियां हैं।  
   दूसरी कहानी है..स्वेटर..जो किसी जादू की तरह है..मतलब ये प्रेडिक्टबल है किसी जादूगर के मायाजाल की तरह मगर विमल आपको उन्ही भावनाओं का अमृत पिला रहे हैं जिसकी सबसे ज्यादा प्यास आपको लगी है। एक घर का होनहार लड़का ऑस्ट्रेलिया जा रहा है जिसकी फ्लाइट का वक्त करीब है, मां-पापा दोस्त यार सब उसके इस विदाई के वक्त में साथ हैं और सबकी अपनी निजी तैयारिया हैं लेकिन एक और है जो एयरपोर्ट पर आने वाली है जो बुन रही है उसके लिए स्वेटर और मेलबर्न में ठंड बहुत पड़ती है इसलिए पिता ने नेपाल से लाये स्वेटर के साथ जैकेट भी पहना दिया है लाडले को..मगर पिता को एयरपोर्ट ना चलने के लिए राज़ी कर ले तो उस लड़की से अपने ढंग से मिल लेगा,ये लड़किया हम सब की ज़िंदगी में अचानक से खास बन जाती है..और सर्दी आज कम भी है तो पिता का दिया स्वेटर जानबूझकर भूल जाना अच्छा है। मगर पिता जिन्हे डॉक्टर ने दौड़ने भागने को डॉक्टर ने मना किया है वही दौड़ते आकर वो स्वेटर थमाते हैं- अरे तुम ये स्वेटर भूल आये थे तकिये के नीचे...और मेरी पसंदीदा लाइन...हम सबके पिता सबसे ज्यादा उसी चीज़ को उपलब्ध दिखाने की कोशिश करते हैं जिसकी सबसे ज्यादा कमी हो उनके पास..और हमारा जो सारा विद्रोह है वो अपने पिता से है क्योंकि इक वही हैं जो हमारी सारी खिलाफ़त का लिहाफ़ रखे हमारे ही बारे में सोचते रहते हैं। ये कहानी इस वक्त मेरे दिल के सबसे करीब रह गई है।
कहानी का तीसरा शीर्षक ग़ज़ब है..मन्नन राय ग़ज़ब आदमी हैं...जी हां यही टाइटिल है विमल की तीसरी कहानी का..ये कहानी मन्नन राय के बहाने न केवल बनारस जैसे पुराने शहर के बदलते मिज़ाज पर व्यंग्य करती है बल्कि इसके मार्फत विमल पूरे देश में बदलाव के ताप का मूल्यांकन करते हैं। एक जगह वो लिखते भी हैं, बच्चे जल्दी जल्दी किशोर, किशोर बड़ी तेज़ी से युवा और युवा बड़ी तेज़ी से अवसादग्रस्त हो रहे थे। हर बात के लिए औसत आयु कम हो रही थी..चाहे बूढ़ों के मरने की बात हो या लड़कियों के ऋतुचक्र के शुरूआत की।इस व्यंग्य में विमल ने कई पीढ़ियों में प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले मन्नन राय को आधार बनाकर बदलते वक्त में वृद्धों की मौजूदा हालत पर ध्यान दिलाया है...और उनकी बात को उधार लेते ये मानना पड़ेगा सच में कि हर मन्नन राय बुढ़ापे में ज्यादा दिनों तक तना रहने नहीं दिया जाता।
चश्मे ये कहानी की किवाड़ का चौथा हिस्सा है जिसमें एक पिता अपने बेटे का छोड़ा हुआ वो चश्मा लगा रहा है जिसके लिए उसने कभी बेटे को डांटा था, परिवर्तन संसार का नियम है लेकिन ये उनपर ज्यादा फबता है जो लचकदार है और झट से बदल जाना वक्त के हिसाब वाली कोई बासी बात बनाकर कहते हैं। लेकिन वो पिता जो कभी चट्टान था और परिवार में तानाशाह था वो अचानक मोम बन जाये तो....विमल एक चश्मे को व्यवहार में शामिल कराकर एक ऐसी बात कह जाते हैं इस कहानी में जो कही कैसे जाय ये भी पेचीदा काम है।
पांचवी कहानी डर जो की इस संग्रह की शीर्षक कहानी भी है एक गंवई लड़की के बारे में जो मां के मर जाने के बाद अपने पिता के साथ है, वो गांव की लड़की है मगर चूहों, तिलचट्टों के साथ-साथ कब्रिस्तान के हाजी बाबा से डरती है मगर पिता कहता है कि उसे कम से कम चूहों और तिलचट्टों से नहीं डरना चाहिए क्योंकि ये सब शहरी लड़कियों पर शोभा देते हैं, इस कहानी मे एक सीन है जहां बाप को खून की उल्टियां होने पर लड़की को मजबूरन डॉक्टर के घर जाना है जो कब्रिस्तान के रास्ते के पार है, इसी कब्रिस्तान में हाजी बाबा की कब्र भी है जो लड़की का डर भी है। वहम, भ्रम और बारिश उसे एक वहशी शराबी के का शिकार बनाते हैं मगर उसके अनदेखे डर से ज्यादा खतरनाक ये दिखने वाला डर है। कैसे हमारा भय हमेशा हावी हो जाता है हम पर और कैसे किसी एक घटना से वो काफूर भी हो जाता है, विमल की ये कहानी प्रतीकात्मक रूप में सब परोस कर रख देती है। 
सोमनाथ का टाइम टेबल ये मेरी सबसे पसंदीदा कहानी इसलिए भी बन पायी क्योंकि इसको पढ़ते वक्त ज़बरदस्त दृश्य रचना करते चलते हैं आप मतलब इतना क्षमता है इस कहानी में कि शुरू से आखिर तक इसमें हास्य, रोमांच, एक्शन, प्रेम और संदेश सब मिलता है। इसके बारे में ज्यादा लिख भी नहीं सकता और यही कहूंगा कि ज़रूर पढ़िये..
सातवीं कहानी है सिगरेट..वैसे तो मुझे नशे से नफरत है लेकिन इस सिगरेट को पता नहीं क्यों मुझे भी अपने हाथों में संभाले रखना अच्छा लगा। विमल की ये कहानी भी प्रतीकात्मक रूप में दोस्ती की अलहदा कहानी के साथ साथ हमारे जीवन जीने के उन महत्वपूर्ण आधारों की तरफ ले जाती है जो ज़िंदगी के किसी भी क्षण बदलते नहीं हैं।
सिगरेट का बाद की कहानी है सफ़र...ये कहानी बताती है कि कैसे हम उन चीज़ों की तरफ ज्यादा परेशान रहते हैं जो हमारे लिए नहीं है लेकिन जो हमारी हैं वो महत्वपूर्ण नहीं है ऐसा भी नहीं है लेकिन वो अहमियत वाला वक्त किस रूप में और कौन से सफ़र से आपको दर्शन देगा ये आप नहीं जानते। ये कहानी बगैर किसी बड़ी फ़िलॉसफी के दिल तक उतर आती है।
किताब की नौंवी कहानी सबसे मज़बूत कहानी लगी मुझे एक शून्य शाश्वत जब शुरू होती है तो लगता है विमल कुछ वही कह रहे हैं जो बहुत सी कहानियों में हमने पाया है या कहीं ना कहीं किसी छाया के साथ ये कहानी चल रही है मगर ये बुनियाद भर इसलिए कॉमन लगती है क्योंकि कहानी हमारे बीच की है। कैसे हम वो बनना चाहते हैं जो बन नहीं सकते और कुछ सपने आई ड्रॉप की तरह आंखों में दाखिल कराने लगते हैं लेकिन देर सवेर नहीं बल्कि छोटे से वक्त में वो सपने आपकी आंखों की कोरों से बह निकलेंगे और फिर? क्या होगा जब आंखों की कटोरी में पुराने छोटे सपने भी बह निकलेंगे होगें दवा के साथ। ये कहानी जब आखरी मोड़ पर पहुंचती है तो चौंकाने लगती है, वैसे चौंकाते विमल कई बार हैं लेकिन इस कहानी में दर्शन भी है और फलसफा चौंकाये तो हैरत भी होती है और जब तक आप कहानी खत्म करते हैं तो गिरफ्तार कुछ ऐसे हो जाते हैं कि अगली कहानी को पढ़ने से इतर इसी कहानी की कोख में अपना शिशु तलाश रहे होते हैं।
उसके बादल और वह जो नहीं है ये दो कहानियां सत्य के आभासों पर केंद्रित हैं..वैसे तो एक ग़ज़ल है कि सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे मगर यहां सत्य बढ़ घट कर भी सत्य ही है। इन दोनो कहानियों में सही और ग़लत वाली जिरह ही आधार है बस फर्क इतना है कि उसके बादल में बड़े जज़्बाती रिश्ते बुने गये हैं और पात्र भी तो वहां निर्णायक कहानी ही है जबकि वह जो नहीं है पूरी तरह से सही और ग़लत कुछ नहीं वाली अवधारणा को छूती हुई बगैर किसी ऊबाउ भाषण के व्यवहारिक छोटे से कथानक से आपको लाजवाब कर जाती है।


     कहानी का आखरी पाट है जैक जैक रूदाद-ए-नीरस प्रेम कहानी..ये कहानी में पहले भी पढ़ चुका हूं और सही मायनो में विमल जी से मेरी मित्रता की ये पहली कड़ी थी तब मैं उन्हें पहली बार उनकी इस कहानी के ज़रिए ही जान पाया था। चूंकि मैं भी मीडिया का मुलाज़िम था तो ये व्यंग्य मेरा फेवरेट बन गया। वैसे मैने कम पढ़ा है बहुत बड़े बड़े साहित्याकारों को लेकिन विमल उनसब में मेरे सबसे पसंदीदा हैं जिन्हे मैने अब तक पढ़ा है वो इसलिए भी क्योंकि मै जो भी लिख रहा हूं वो उनकी अगर स्टाइल कॉपी करना भी हो तो मुझे कोई दिक्कत नहीं। कोई दिन नागा नहीं जाता जब मैं उनसे सीखता नहीं। बहुत से लोग साहित्यकार हैं लेकिन विमल साहित्य के यार हैं और साहित्यकारों से ज़्यादा साहित्ययारों की ज़रूरत है, ऐसा मेरा निजी विचार है।

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