Tuesday, June 15, 2010

नये वादों का बेहतर जाल..


ओबामा भारत आने का ऐलान कर चुके हैं। ये घोषणा क्रमवार ख़ास बातचीत के तमाम दौरों की वजह से भी बहुत कुछ कह रही है। ओबामा से पहले भारत के विदेश मंत्री एस.एम कृष्णा और उनकी अमेरीकी समकक्ष हिलेरी क्लिंटन के बीच का रणनीतिक डॉयलॉग हुआ, थोड़ा और पूर्व मे जायें तो भारत मे दोनो देशों के विदेश सचिवों की सचिव स्तरीय वार्ता भी हुई..हालांकि ये वर्ड एक्सचेंज, अमेरिका की तरफ से भारत और पाकिस्तान दोनो को अपने संबधों को सुधारने की नसीहत भर रह गया लेकिन महत्व इस बातचीत का भी है। दरअसल आतंकवादियों की फेवरेट जगह के मामले मे भारत भले ही नंबर वन पर हो लेकिन हाल ही मे टाईम स्क्वॉयर पर हुए नाकाम हमले ने अमेरिका को भी चौकन्ना कर दिया है। वो अमेरिका जो पाकिस्तान की जानबूझ कर की जा रही नादानियों को सिर्फ इसलिए नज़रअंदाज किये जा रहा था क्यूंकि उसे लगता था कि इसी बहाने वो आतंकवाद से भी बच जायेगा और विश्व शक्ति बनने की उसकी राह भी मुकम्मल हो जायेगी। लेकिन वो कहते हैं ना चोर चोरी से जाये मगर सीनाजोरी से ना जाय..और यही कारण है कि टाईम्स स्क्वॉयर हमले के बाद अमेरिका ने ये समझ लिया है कि पाकिस्तान अपनी फ़ितरत नही छोड़ सकता। भारत की एहमियत अमेरिका मानता और समझता रहा है लेकिन हमारी react ना करने के liberal रवैये से उसका मन भी बढ़ता रहा है। ख़ैर हमारा तौर-तरीका आज भी नही बदला है लेकिन इनसब के बावजूद बहुत कुछ अच्छे तौर पर परिवर्तन की राह पर तेज़ी से बढ़ रहा है। ओबामा का भारत आने की घोषणा करना और वो भी अमेरीकी विदेश विभाग के प्रोटोकॉल का उल्लंघन करके? सोचने वाली बात ये है कि ओबामा मौके के महत्व को लक्ष्य कर ये सब किया। ये बड़ी Rare स्थिति है जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति सारे नियम-कायदों को ताक पर रखकर किसी अन्य देश के सम्मान समारोह मे शामिल होता है। उधर हिलेरी क्लिंटन द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मे भारत की दावेदारी को समर्थन देने की बात कहना ये संकेत ज़रूर कर रहा है कि ये महज़ "Lip Service" नही है और लगता भी है कि नये वादों के जाल मे आने वाले वक्त का कुछ हला-भला करने की कोशिश तो जरूर हो रही है?

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