Monday, June 28, 2010

खा़मोशी ख़ुद अपनी ज़ुबाँ दे..हो सकता है?


भोपाल गैस कांड पर लगातार कुछ ना कुछ लिखा और बोला जा रहा है..मेरे ब्लॉग मित्रों को भी शायद ये शिकायत रही हो कि मैने क्यूं नहीं कोई विचार, आलोचना या फिर कटाक्ष किया इस भयानक औद्योगिक त्रासदी के परत-दर-परत खुलते घटनाक्रम पर? माफ़ी ज़रूर चाहुंगा मित्रों जो इतना कुछ देख-सुन और समझकर भी मैने अपने विचार जो ग़ुस्से की शक्ल लिए फड़फड़ा रहे थे, उन्हें पिंजरे मे क़ैद रखा।दरअसल..दुनिया की इस सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी पर अबतक कुछ ना अभिव्यक्त करने की वजह थी हर रोज़ नये नामों और ख़ुलासों का सामने आना, क्या सच है और क्या झूठ इस बात की कशमकश और इनसबसे अलग इस बात के ख़्याल से रूक जाना कि क्या राजीव गाँधी की कोई भूमिका वास्तव में हो सकती है? इन सारी बातों पर जिरह करने से पहले..इस त्रासदी मे ख़त्म हुई ज़िन्दगियों और उनके परिवारों के प्रति मेरी नाकाफ़ी संवेदना..साथ ही आज भी जीवन से युद्ध कर रहे प्रभावित लोगों के लिए भी मैं एक ईमानदार प्रार्थना करना चाहता हूं..और मौत की मेहरबानी लेकर आये उस एंडरसन के लिए घृणा भरा एक पैग़ाम देना चाहता हूं। मैं कहना चाहता हूं..सुन एंडरसन..ये सच है कि "गुनाह छुपाना आसान है क़त्ल की रात को..पर सवार फिर भी है मौत, ज़िन्दगी की दरो-दीवार को"..मतलब साफ है कि भगवान आज नही तो कल तेरा भी न्याय कर ही देंगे। लेकिन इन सबसे अलग जो व्यक्ति आजकल सवालों के घेरे मे है वो है अर्जुन सिंह..वो अर्जुन सिंह जो तत्कालीन मुख्यमंत्री थे और आज चुप हैं..अर्जुन सिंह चुप हैं या कराये गये हैं, ये भी सवाले-तलब है? ऐसा नहीं है कि अर्जुन सिंह ने कुछ कहा नहीं..लेकिन जो कुछ कहा वो समाचार पत्र के संपादक से कानाफूसी में जो आजतक साबितशुदा होने की बाट जोह रहा है। ख़ैर करवट लेकर और आंखें खोलकर सोये इस अर्जुन के मुंह खोलने का वक्त जब आये तब आये लेकिन सरकार के ज़बरदस्ती आंखें मींचकर बैठे रहने की अवस्था ने उसकी भी नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। दरअसल जबसे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की भूमिका इस त्रासदी की ज़िम्मेदारियों के मद्देनज़र निकलकर सामने आने लगी हैं तभी से लाचारों वाली स्थिति देखने को मिल रही है। सत्ता और सत्ता के बाहर, हर तरफ शोर है कि आख़िर किसके मन मे खोट है? छोड़िए जनाब अर्जुन और राजीव के दामन को..ज़रा नज़र घुमाईये सियासत के इर्द-गिर्द के शोहरतपसंद शूरवीरों पर..एक दिग्गज हैं दिग्विजय सिंह जो परदेस मे गये तो है अपनी पत्नी का इलाज कराने लेकिन सर जी को पता है कि सात समंदर पार से ख़बरों मे कैसे रहा जाय..दिग्गी राजा वहीं से कह देते है कि हो सकता है कि सरकार की रज़ामंदी से एंडरसन को वापस भेजा गया हो..हालाँकि आग लगी तो दिग्गी राजा deny कर गये अपने बोलवचनों से।उधर तमाम ब्यूरोक्रैट्स जो हमेशा से सत्ता के इशारों पर नाचते रहे हैं अचानक से ज़मीर की बयाने-गुलामी करने लगते हैं..25 साल तक अपनी ज़ुबान को ज़हमत ना देने वाले ये नौकरशाह अब इतना बोल रहे हैं कि मानों इतने बरस अंदर से भरे बैठे थे? अंतरआत्मा की आवाज़ इन्हे इतने वर्षों मे कभी नही सुनाई दी, और साहब सुनाई भी कैसे देती जब ब्यूरोक्रेसी की परम्परा को पूरी शिद्दत के साथ निभाने की धुन सवार थी इनके दिलो-दिमाग पर। देर से जागी इनकी अंतरआत्मा भी उतनी ही दोषी है जितनी कि सरकार की तरफ से की गई अनदेखी..और जब हर ओर लोग सरकार को कोस रहे हो तो सरकार के लिए भी कान मे तेल डालकर सोने का अभिनय करना आसान नही था..सो अचानक PM सर एक्टिव हुए और त्रासदी के तमाम पहलुओं की जांच के लिए मंत्रीसमूह यानि GOM बना डाली..कहा दरबार मे दस दिन के अंदर रिपोर्ट पेश हो जानी चाहिए..वैसे इतनी लेटलतीफ़ी हो चुकी थी इस मामले मे कि अगर GOM तय वक्त से थोड़ा ज़्यादा समय लेती तो उसके ढीलेपन पर भी एक जांच कमेटी बनानी पड़ती..शुक्र है, ऐसा कुछ हुआ नही। रिपोर्ट मनमोहन सर को भेंट कर दी गई है..अब इसे साहस नही कहेंगे तो क्या कहेंगे कि इस पूरे दस्तावेज़ मे ख़ामोश अर्जुन को किसी भी प्रकार से बोलने पर विवश नही किया गया है..मुआवज़े का मरहम लगाकर सबकुछ भूल जाने की गुज़ारिश करती ये रिपोर्ट पीड़ा को पैसे से तोल रही है और ये सबकुछ जो हो रहा है वो बड़ी ही ख़ामोश मिज़ाजी से..लेकिन ये सारे बनावटी और खोखली दिलासा देने वाले सियासी खिलाड़ी ये नही जानते कि यही ख़ामोशी एक दिन अपनी ज़ुबाँ दे..ऐसा भी हो सकता है..So wait and watch nation....

2 comments:

  1. अर्जुन सिंह की भूमिका को जांचने परखने की जरूरत या फिर गुंजाइश नहीं है अब...दरअसल एंडरसन से बड़ा गुनहगार तो अर्जुन सिंह जैसे लोग हैं..अब सवाल जब राजीव गांधी की भूमिका की है तो सवाल ये कि इस बहस का फायदा क्या है अब..जो लोग दोषी हैं, जिनके बारे में पता है कि उन्हीं की देन है कि आज भी यूनियन कार्बाइड का जहर मां के कोख में समाया रहता है...उन्हें किस मुकदमे में दोषी बनाया गया या फिर उनके खिलाफ आवाज उठायी गई हो...कांग्रेस की ये सरकार जिसने बड़े ही इत्मीनान और बेहयायी से ये कह दिया कि एंडरसन को भगाना उस वक्त की जरूरत थी..क्या कहने के लिए कुछ छोड़ता है...

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  2. इतनी उम्दा टिप्पणी के लिए धन्यवाद अमृत..बहुत कुछ सीखना है आपसे..प्रेरणा मिल रही है आपसे..

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राय ज़ाहिर करने की चीज़ है..छुपाने की नहीं..