बस इक माफी चाहें तुमसे....
क्या करें जो फिर से जुड़ जाएं तुमसे...
हमने की है कई गलतियां...
तुम्हारी नजर में फिर से उठ जाएं कैसे...
कान पकड़ें, हाथ जोड़े या करें मिन्नतें लाख....
हंसता हुई अपनी हमराह को मनाएं कैसे..
कैसे कहें कि कर दो माफ पहली गलती थी...
तुम्हारी सोच के मुताबिक नजर आएं कैसे..
अब तुम ही बता तो कि इन आंसुओं की कटोरी खाली कहां करें...
तुम्हारा साथ न हो तो इस शहर में जिए जाएं कैसे..
बताएं तुमको बिछड़ते वक्त , छुटते साथ का क्या मतलब था..
तुम्हारा साथ करम था कुदरत का..देते हैं जिसे दुआएं हम तो...
बस इक माफी...तुम्हारी कसम..कभी जो फिर सताएं ऐसे...
COPYRIGHT - PRASHANT PANDEY, MUMBAI ( 26/9/2021)
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