Wednesday, March 3, 2010

भाजपा...तुझको चलना होगा...


ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय...कभी तो हंसाए..कभी ये रुलाए..आनन्द फिल्म का ये गीत कुछ ख़ास मौकों पर हम गाते हैं या निराशा मे आशा का बीजारोपण भी इस गीत के माध्यम से करने की कोशिश की जाती है..शायद इन्ही सब वजहों से भाजपा के नये-नवेले उत्साही अध्यक्ष नितिन गडकरी ये गीत गाकर भाजपा की भुजाओं को एक बार फिर से मज़बूत करने जुटे हैं...ख़ास बात ये भी रही कि गीत की उत्साहवर्धक गोली मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के शिवराज सिंह चौहान ने भी मन्ना डे के ‍‍‌‌‌"नदिया चले..चले ये धारा" गीत के ज़रिये भाजपा के तमाम उपस्थित नेताओं और कार्यकर्ताओं को खिलाई..कुछ सपने साथ लिए और आत्मविश्वास से लबरेज़ गडकरी की बातें कहीं कहीं सटीक और ईमानदार लगती हैं...अपने संबोधन की शुरुआत ही वो जनसंघ की बातों से करते हैं जो भाजपा के पिछले किसी अधिवेशन में शामिल नहीं रही..श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक..गडकरी के भाषण में वो सभी शख्सियतें शुमार थीं जिनसे प्रेरणा लेने की बातें बड़ी शिद्दत से महसूस तो की जा रही थी लेकिन कोई ये समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ये सब किया कैसे जाय..आज एनडीप्रमुख विपक्षी दल है किन्तु काफी लम्बे वक़्त से पार्टी अपने इस दायित्व से ना चाहते हुए भी पीछे हट रही थी..आतंरिक असंतोष और लगातार पनप रहे विवादों ने पार्टी को हार के बाद के अनिवार्य आत्ममंथन की इजाज़त ही नहीं दी..लेकिन इन सबके बीच बीजेपी के अन्दर के लोकतंत्र ने जिसके लिए पार्टी हमेशा से पहचानी जाती रही है, परिवर्तन की ख्वाहिश पैदा की..और अपेक्षाकृत कम उम्र के युवा नेतृत्व को भाजपा का हिसाब-क़िताब दुरूस्त करने की जिम्मेदारी मिली..अब देखना है की आगे की जो चुनौती भरी राह जो गीतों और नितिन गडकरी की जोशीली किन्तु प्रेक्टिकल बातों ने दिखाई है उस पर ये कमल के सिपाही चलने का साहस जुटा पाते हैं या नहीं....

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